रूखे पन्नों पे लिखा
अधूरा एक लफ्ज़ हूँ मैं
कहीं से स्याही ला
पूरा कर दो मुझे
सूखी टहनियों की कटक
सी कसक हूँ मैं
अब बस बहार का
इंतज़ार है मुझे
कभी उगते सूरज सा
जल जाने का जी करता है
और कभी कबूतर जैसे
उड़ जाने का
ख्वाहिशें ये जो हैं इतनी सारी
पर कितनी हैं हसीं और ज़िंदा
इनसे भी कभी
कहीं और ज़्यादा जीने का जी करता है
Ther eis so much to enjoy in life. Loved your poem.
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kajal
hey thanks
Deletem not a regular one like u, glad to have found u 2.
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bhanu